सोमवार, 11 नवंबर 2013

मेरे बारे मे

 अपने बारे में लिखना हमेशा ही मुश्किल काम होता है। ख़ैर, फिर भी मैं कोशिश करता हूँ। अपने बारे में बताने के लिए कुछ खास तो नहीं है इसलिए जो आम है वही मैं आपको बताता हूँ। मेरा जन्म मध्यप्रदेश के रीवा जिले अंतर्गत हनुमना से ठीक पूर्व में १४ किलोमीटर दूर  बसे एक छोटे से सुन्दर गांव पांती मिश्रान में मध्यमवर्गीय हिन्दू परिवार में हुआ ।
         मैं लगभग ६ फिट  लम्बाई दिखने में सामान्य पर कुछ दोस्त कहते हैं ठीक दिखता हूँ, अत्यंत भावुक हूँ इसीलिए दोस्त ज्यादा हैं दुश्मन तो हैं ही नहीं, ज्यादा दिन किसी से नाराज़ नहीं रह पाता, कोई भी मुस्कुरा कर बोल दे तो सारी पुरानी बातें भूल जाता हूं । मैं कम बोलता हूं, पर कुछ लोग कहते हैं कि जब मैं बोलता हूं तो बहुत बोलता हूं । मुझे लगता है कि मैं ज्यादा सोचता हूं मगर उनसे पूछ कर देखिये जिन्हे मैंने बिना सोचे समझे जाने क्या-क्या कहा है! मैं जैसा खुद को देखता हूं, शायद मैं वैसा नहीं हूं…….कभी कभी थोड़ा सा चालाक और कभी बहुत भोला भी… कभी थोड़ा क्रूर और कभी थोड़ा भावुक भी…. मैं एक बहुत आम इन्सान हूं जिसके कुछ सपने हैं…कुछ टूटे हैं और बहुत से पूरे भी हुए हैं…पर ..थोड़ा सा विद्रोही…परम्परायें तोड़ना चाहता हूं … और कभी कभी थोड़ा डरता भी हूं… मुझे खुद से बातें करना पसंद है और दीवारों से भी…बहुत से और लोगों की तरह मुझे भी लगता है कि मैं अकेला हूं…मैं बहुत मजबूत हूं और बहुत कमजोर भी…”अपनी इच्छा को पाने एक लिए उसके बारे मैं सोचना अच्छी बात है मगर जीवन मे सब कुछ नही मिलता इस बात के लिए हमेशा तैयार रहे।
       मैं एक संवेदनशील, सादे विचार वाला, सरल व्यक्ति हूँ। मुझे अपनी मातृभाषा हिंदी पर गर्व है। मैने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाव के विद्यालय से प्राप्त की है अपने ही गॉव के साथियो के साथ खेलना झगड़ना फिर मिल जाना......रास्ते मे आते जाते शैतानी करना कभी नही भुलाया जा सकता कुछ तो बात रही होगी हमारेभाग्य में कि हमें यह परिवेश मिला। हो सकता है कि यहाँ पर उतनी सुविधायें न मिली हों जो आज कल के नगरीय विद्यालयों में हमारे बच्चों को उपलब्ध रहती हैं, हो सकता है कि यहाँ पर अंग्रेजी बोलना और समझना न सीख पाने से विश्वपटल से जुड़ने में प्रारम्भिक कठिनाई आयी हो, हो सकता है कि कुछ विषय अस्पष्ट रह गये हों, हो सकता है कि प्रतियोगी परीक्षाओं का आधार यहाँ निर्मित न हो पाया हो। यह सब होने के बाद भी जो आत्मीयता, जो गुरुत्व, जो विश्वास, जो गाम्भीर्य हमें मिला है वह तब कहीं और संभव भी नहीं था, और न अब वर्तमान में कहीं दिखायी पड़ता है। मेरे लिये वही एक धरोहर है। जो व्यक्तित्व यहाँ से विकसित होकर निकला है, वह एक ठोस ढाँचा  है, वह अपने शेष सभी रिक्त भरने में सक्षम  है।
आज जीवन के ऐसे मुहाने पर खड़ा हू जहा जीवन जीने का लक्ष्य आँखमिचौली खेल रहा है अपनी जन्मभूमि से कोसो दूर हू इस बात का दुख शीने मे टीस की तरह चुभता है काश अपने गाव की गलियो की मिट्टी मे जीवन भर रहने का सौभाग्य मिलता लेकिन बेरोज़गारी ......इक गुस्सा अपनो बुज़ुर्गो के प्रति न चाहते हुए भी है की अगर वो समय रहते अपने बच्चो के भविस्या के बारे मे सोचा होता तो हमे अपने जन्मभूमि से अलग न होता पड़ता .....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें