शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

वो अब कैसी होगी। बहुत बदल गयी होगी। मिले तो शायद मैं न पहचान पाऊँ। चेहरे पर कहीं-कहीं झुर्रियों ने अपनी जगह जरूर बना ली होगी। आंखों के नीचे कालिख आ गयी होगी। बाल कम हो गये होंगे, कुछ सफेद भी हो गये होंगे। बच्चे भी हों शायद। उनकी चिंता भी होगी। उनकी पढ़ाई-लिखाई, उनकी जरूरतें। पति से रिश्ते कैसे होंगे। अगर वह प्यार नहीं करता होगा तो वह और बुढ़ा गयी होगी। मैं भी तो बदल गया हूं। घर के अलबम में संभालकर रखी अपनी पुरानी तस्वीर देखता हूं तो खुद को ही पहचान नहीं पाता हूं। चेहरे की सारी मासूमियत वक्त ने छीन ली है। पहले से ही सांवला था, अब रंग कुछ और गहरा हो गया है। चश्मा पहनने से नाक पर गड्ढे बन गये हैं। बाल तो किशोर उम्र में ही इक्का-दुक्का सफेद होने लगे थे, अब तो नकली रंग ओढ़ना पड़ता है। सिर खाली हो गया है। पूरा खल्वाट तो नहीं मगर इतना ही कह सकता हूं कि लाज बची हुई है। कोई सामने से देखे तो बहुत बुरा नहीं लगूंगा लेकिन पीछे से उम्र के खंडहर साफ नजर आते हैं। अगर हम दोनों किसी बस स्टेशन या रेलवे प्लेटफार्म पर संयोगवश पास से गुजर जायें तो कोई किसी को नहीं पहचान पायेगा। समय सारे निशान मिटा देता है लेकिन यादें नहीं छीन पाता। वह मेरी स्मृति के किसी कोने में अभी भी बनी हुई है। सुंदर नैन-नक्श, कजरारी आंखें। एक पूर्ण युवा शरीर। कपड़ों के ऊपर मढ़े हुए शिखर और घाटियां। सलवटों में नाचती हुई नदियां। चहकती हुई चिड़िया जैसी। महंकते हुए बोल। हर मुस्कान में गुलाब की पंखड़ियां बरसाती हुई। दुपट्टे में अपने को छिपाने की कोशिश करती हुई। उसका बैठना, उठना, चलना, बोलना, मुस्कराना, ऐंठना, नखरे करना और गुस्सा होना सब मुझे पसंद था। मुझे उसके पास होने, उससे बतियाने का कोई भी मौका मिलता तो मैं उसे छोड़ता नहीं। हम दोनों साथ-साथ बड़े हुए थे, साथ-साथ खेले-कूदे थे, पढ़े थे। हमारा घर भी पास-पास ही था। कई बार मैं कोई बहाना ढूंढकर उसके घर पहुंच जाता। वह नहीं होती तो चाची से बतियाता, यह सोचता हुआ कि शायद वह पास ही कहीं गयी होगी, अभी आ जायेगी। गांव में उसके पापा सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे माने जाते थे। वे अखबार पढ़ते थे। मैं छोटा था, उन्हें पढ़ते हुए देखता तो रुक जाता। वे बड़े प्यार से हाल-चाल पूछते, पढ़ाई-लिखाई के बारे में उत्सुकता दिखाते, कभी-कभी सवाल भी पूछ लेते, पहेली हल करने को दे देते। फिर तो मैं पहेली हल करने की माथा-पच्ची में जुट जाता। अक्सर ऐसे मौकों पर वह आ जाती। या तो पापा के लिए दवाई लेकर या लाई-भूजा लेकर या फिर केवल पूछने के लिए कि वे खाना कब खायेंगे। मुझे बड़ी मुश्किल होती। किस तरह चाचा से आंखें बचाकर उसे देख लूं।

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